Wednesday, July 23, 2008

हम बच्चों की दुनिया

नाचें गाएँ चित्र बनाएँ
अभिनय करके सिख सिखाएँ
अपनी बातों को कहें हम
ऐसाएक संसार बनाएँ
हम बच्चों की हो एक दुनिया
जहाँ हँसे खेले और सीखें
हारकर भी मुस्कुराना
जितना पर अहम् न करना
सहयोग की ही रहे भावना
करे हर कठिनाई का सामना
बाल महोत्सव में यह सब कुछ
सीखेंगे हम सब ये सबकुछ
हमें मिला है अपना मंच
करेंगे अपने सपने सच
आओ मिलकर हाथ बताएं
नया कुछ हम कर दिखाएँ

बाल महोत्सव क्यो.

. बचपन ..............शब्द सुनते ही बस्ते,किताबें, स्कूल, तोतली बोली आदि दृश्यगत होने हैं। मासूमियत से भरी यह एक आईसी उम्र होती है, जिसे मनचाहा आकार-विचार देकर जैसा चाहें ,व् ऐसे व्यक्तित्व का निर्माण किया जा सकता है। बचपन को ऐसे स्वस्थ व् स्वच्छ प्रतियोगी वातावरण की जरुरत होती है जहाँ परस्पर सयोग की भावना पनपे, प्रतिभा का निखर हो, पर हरने वाला कुंठित भी न हो। वे जीते तो किलकारियों से सारा जहाँ गूंजे और हरे तो जितने की प्रेरणा ले। वैसे अनुन्सधनों से सिद्ध हो चुका है की खेल-खेल में दिए गए ज्ञान की गहरी पैठ होती है । अर्थात बच्चो के शारीरिक एवम मानसिक विकास हेतु किताबें पढ़ाए ही सबकुछ नहीं होती। बच्चों की एक अलग दुनिया होती है ,अथ उन्हें असा मंच मिलाना चाहिए जहाँ वह कुछ कर सकें .इन सभी बातो पर विचार करानेके बाद हमने " बाल महोत्सव" का आयोजन करने का फैसला लिया जो पिछले पाँच वर्षों से होता आ रहा है। इस आयोजन एक सांस्कृतिक आयोजन है जिसमें सामान्य ज्ञान ,भाषण, पेंटिंग, कहानी-कविता लेखन, नृत्य(एकल,samuh), एकल गायन,फंसी ड्रेस, कविता या रैम्स पाठ,नाटक, एकल अभिनय आदि। यह आयोजन स्कूल के बच्चों के लिए ही नहोता आया है। इस आयोजन के पिच्छे एक सोच रही है.चुकी हमलोग बिहार के आरा जैसे पिछडे इलाका से आते हैं। यह बात २००४ की है जब भोजपुर जिला का पूरा इलाका रणवीर सेना - माले आपसी खुनी -ज़मीनी विवाद से त्रस्त था .लगभग रोज ही नरसंहार की खबरे पर्दाने- सुन्सने में आती थी। हम यवनिका के लोग लगातार इस खुनी माहौल पर चिंतन किया करते थे.उस समय संस्था के कुछ सदस्य मीडिया से जुड़े हुए थे। फलतः प्रशासन से अच्छी बातचीत होती रहती थी। तब जिलाधिकारी जीतेन्द्र श्रीवास्तव तथा सदर अनुमंडलाधिकारी ,वीरेंदर प्रताप से बाल महोत्सव के सन्दर्भ में बात हुई। हमलोगों इन लोगों को इस आयोजन का प्रभाव बताया की कैसे हम सुदूर गाँव के बच्चों को इस आयोजन से जोडेंगे। दोनों अधिकारीयों ने हमें सहयोग करने की बात ही नहीं की बल्कि इस कार्यक्रम का नींव भी डाला ।
सन २००८ में बाल महोत्सव अपना पांचवा वर्षगांठ मानाने जा रहा है , उम्मीद्तः इस वर्ष भी बाल प्रतियोगियों की संख्या ७००० हज़ार से कम नहीं होगी .सौभाग्य की बात है की भोजपुरी इलाका से जुड़े लोग भी यथा सम्भव अपना सहयोग जहाँ है वहीं से कर रहे हैं। इस सांस्कृतिक महायज्ञ में शिरकत करें।

Monday, July 14, 2008

बच्चों की फुलवारी

हँसते बच्चे , गुनगुनाते बच्चे
खेलते बच्चे, खिलखिलाते बच्चे
अच्छे लगते हैं।
कभी रोते, कभी गुस्साते
छोटी बातों पर इतराते
कभी - कभी आपस में
लड़ जाते,
फ़िर भी दोस्ती निभाते
क्षण भर में सबको अपना बनते
अच्छे लगते हैं।